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Sunday, February 20, 2011

<<<<< बाज ( ईगल )>>-BHRAMAR A COLLECTION OF HINDI POEMS (KAVITA) BY BHRAMAR

<<<<< बाज ( ईगल )>>-BHRAMAR
A COLLECTION OF HINDI POEMS (KAVITA) BY BHRAMAR
कभी कभी मन कहता मेरा
"बाज" बने उड़ जाऊं
"मुक्त" फिरूं मै
आसमान में
चोंच बहुत है तेज हमारी
बड़ी नुकीली बहुत कंटीली
पंजे बड़े हैं " जालिम"
'दूर-दृष्टि" भी पाई मैंने
"पंखे" हैं मजबूत
उड़ता जाऊं उड़ता जाऊं
कभी पकड़ ना आऊँ.
कोई अगर ' साहस' भी करता
उसको ' घूर' डराऊं
छोटे - मोटे - बड़े शिकारी
भागें 'सिर पर पांव रखे'
अपने ' अंडे बच्चे से '
जो रत्ती भर प्यार करें
अगर ' धृष्ट - दुस्साहस' -
कोई - मार झपट्टा आऊँ
मेरा बस जो चले अगर
तो - मार उसे मै खाऊँ
दो - चार अगर वे आयें
लेकर अपना ' जाल ' बड़ा
मै भी अपना ' झुण्ड' लिए
उड़ - जाऊं - देखूं -कौन बड़ा
ना डरता मै - पकड़ गया जो
बंधन- कैद में जकड गया तो
' तोते ' सा मै पिंजरे बैठा
' घर का खाना खाऊँ '
' नाज ' हमें मुझ पर तो होगा
सारा जीवन उड़ा फिर मै
छीन- झपट -भर रक्खा
अब भी कितना भरा पड़ा है
' गुप्त-खजाना ' -
"हाड़- मांस" भी
खोह - कन्दरा -
दबा दबाया रक्खा.
सुरेंद्रशुक्लाभ्रमर
२०.२.११ ७.१४ मध्याह्न
जल( पी.बी.)

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