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ACOLL ECTION OF HINDI POEMS (KAVITA ) BY BHRAMAR
कभी कभी मन कहता मेरा
"बाज" बने उड़ जाऊं
"मुक्त" फिरूं मै
आसमान में
चोंच बहुत है तेज हमारी
बड़ी नुकीली बहुत कंटीली
पंजे बड़े हैं " जालिम"
'दूर-दृष्टि" भी पाई मैंने
"पंखे" हैं मजबूत
उड़ता जाऊं उड़ता जाऊं
कभी पकड़ ना आऊँ.
कोई अगर ' साहस' भी करता
उसको ' घूर' डराऊं
छोटे - मोटे - बड़े शिकारी
भागें 'सिर पर पांव रखे'
अपने ' अंडे बच्चे से '
जो रत्ती भर प्यार करें
अगर ' धृष्ट - दुस्साहस' -
कोई - मार झपट्टा आऊँ
मेरा बस जो चले अगर
तो - मार उसे मै खाऊँ
दो - चार अगर वे आयें
लेकर अपना ' जाल ' बड़ा
मै भी अपना ' झुण्ड' लिए
उड़ - जाऊं - देखूं -कौन बड़ा
ना डरता मै - पकड़ गया जो
बंधन- कैद में जकड गया तो
' तोते ' सा मै पिंजरे बैठा
' घर का खाना खाऊँ '
' नाज ' हमें मुझ पर तो होगा
सारा जीवन उड़ा फिर मै
छीन- झपट -भर रक्खा
अब भी कितना भरा पड़ा है
' गुप्त-खजाना ' -
"हाड़- मांस" भी
खोह - कन्दरा -
दबा दबाया रक्खा.
सुरेंद्रशुक्लाभ्रमर
२०.२.११ ७.१४ मध्याह्न
जल( पी.बी.)
A
कभी कभी मन कहता मेरा
"बाज" बने उड़ जाऊं
"मुक्त" फिरूं मै
आसमान में
चोंच बहुत है तेज हमारी
बड़ी नुकीली बहुत कंटीली
पंजे बड़े हैं " जालिम"
'दूर-दृष्टि" भी पाई मैंने
"पंखे" हैं मजबूत
उड़ता जाऊं उड़ता जाऊं
कभी पकड़ ना आऊँ.
कोई अगर ' साहस' भी करता
उसको ' घूर' डराऊं
छोटे - मोटे - बड़े शिकारी
भागें 'सिर पर पांव रखे'
अपने ' अंडे बच्चे से '
जो रत्ती भर प्यार करें
अगर ' धृष्ट - दुस्साहस' -
कोई - मार झपट्टा आऊँ
मेरा बस जो चले अगर
तो - मार उसे मै खाऊँ
दो - चार अगर वे आयें
लेकर अपना ' जाल ' बड़ा
मै भी अपना ' झुण्ड' लिए
उड़ - जाऊं - देखूं -कौन बड़ा
ना डरता मै - पकड़ गया जो
बंधन- कैद में जकड गया तो
' तोते ' सा मै पिंजरे बैठा
' घर का खाना खाऊँ '
' नाज ' हमें मुझ पर तो होगा
सारा जीवन उड़ा फिर मै
छीन- झपट -भर रक्खा
अब भी कितना भरा पड़ा है
' गुप्त-खजाना ' -
"हाड़- मांस" भी
खोह - कन्दरा -
दबा दबाया रक्खा.
सुरेंद्रशुक्लाभ्रमर
२०.२.११ ७.१४ मध्याह्न
जल( पी.बी.)
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