“नारी ”- भ्रमर -हिंदी पोएम .
“नारी ” का एक
रूप खोजने ,
गहराई में
उतर गया
बंधा -पड़ा
था उस
कीचड में
जैसे पत्ता -नाल l
“कमल ” था उपर -
खिला “वो ” नारी"
उसने मुझे
निकाला
चिल्लाया जब
रोया जी भर
देखा उसने
गोद ले अपने
गले -लगाया .
संग में खेले -
कूदे -छोटी ,
प्यार लुटाती
संग –संग में
मेरे रोती
वो थी मेरे
घर का गहना
कहते जिसको
हम थे “बहना ”.
बचपन की कुछ
सखी –सहेली ,
आँख –मिचौली ,
रंग -रंगोली ,
वे हमजोली
मुहबोली -
छुपा -छुपी
सब गयी - दूर
गोपी -कृष्ण
की - "नारी"
बन के वो
अलबेली .
बूझ न पाया
मन के उनको
एक पहेली .
मन में उठा
शोर कब रुकता ,
ये किशोर मन
सपने बुनता
कली -फूल
आदम -हव्वा
सा –मुक्त
ह्रदय फिर
बेकरार कुछ
रहे तड़पता
जलता –शोला
बादल –बिजली
चिड़िया -तितली
देख -देख कर
छूने को मन
उड़ने को बेताब
घरौंदा खोजे
जाता -गाता .
आये बादल
मोर नाचता
थिरक -थिरक मन
उड़े गगन
कुछ चली हवा
वो “मधुर ” मिलन
सुहानी
छू निकली
जब बदन हमारा
जाग गया
बौराया मन
स्पर्श किया
साँसों में भर
प्राणवायु .
जीने का संकल्प
लिया संग
माँ बहना वो-
दोस्त हमारी
रहती मुझपे
‘वो ’ मनुहारी .
सुख -दुःख सदा
साथ बलिहारी
न्योछावर जो
“वो ” एक नारी .
जो पाया मै
प्यार आज तक
कैसे मै बरसाऊँ
दिल में बोझ
लिए मै घूमूं
भरा - कुम्भ सा
बादल क्यों ना
मै बन जाऊँ
रिमझिम बूंदे
बरसे –जब
सावन मन भावन
धरती - तरसे
फिर तब -
उगे बीज -कुछ
पौधे -पले -
बढे हांथो से
मेरे . मैंने उन्हें
खिलाया -खेला
मन भर .
“रूप ” एक गंगा -
सरस्वती
सीता का फिर
पाया -मुझे दुलारे
प्यार करे वो
रखती मेरा मान
जिस पर है विश्वास-
भरोसा
मन में है
अभिमान .
एक पाँव् पे
खड़ी वो रहती
माँ -बाबा के काम
उसका प्रेम –
पवित्र है इतना
जैसे चमके -
सोना -शुद्ध -
खरा वो हीरे
सी है
जिसे “जौहरी ”
जाने . कहें
“भ्रमर ”-जो
डूबे –उतराए
थाह लगाये
जनम –जनम भर
भव -सागर में
वो “नारी ”
को जाने
माने .
सुरेन्द्रशुक्लाभ्रमार
१३ .२ .११ ७ .३० पूर्वाह्न
जल (पी बी ).
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