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Monday, February 21, 2011

"भौंरा हूँ मुक्त फिरूं " -भ्रमर-कविता (हिंदी पोएम)








"भौंरा हूँ मुक्त फिरूं " -भ्रमर-कविता (हिंदी पोएम)
भौंरा हूँ मुक्त फिरूं
इधर - उधर डोलूँ
उड़ता फिरूं मै
जग को टटोलूं
कांटे को छोड़ बढूँ
कली - कली
फूल - फूल.
गाँव को देखा
प्यारा झरोखा है
घर - संसार का
अपनों के प्यार का
पलते दुलार का
अम्मा से चाची का
दादी से नानी का
ननदी से भाउज का
बाबा और ताऊ का
कितना प्रसार है-
"नातों " का
दूर - दूर.
नदिया - तालाब का
खेत-वन - बाग़का
"पाथर" - मज़ार का
पीपल और बेल
के –‘जादुई-पात का
कैसा जुडाव है
होली - दिवाली का
सखी - सहेली का
दुल्हन - नवेली का
"लक्ष्मी" सा प्यार है
दिल में भरा
कूट - कूट.
अलबेली -बेल का
छुपा - छुपी खेल का
गाँव के मेले का
' सावन ' के झूले का
कजरी से सोहर का
बेगम से ' सौहर' का
पायल से बिंदिया का
मेहनत से निंदियाका
सुख भरा नाता है-
"अम्मा" और पूत का
प्यार भरा
कूट -कूट .
गोरी के जाम भरे
नैनो के प्याले में
सुर्ख सुर्ख गालों में
जुल्फों की बदली में
भौंरातो कैद हुआ
रात - रानी
कली - खिली
फूल -फूल.
सुरेंद्रशुक्लाभ्रमर
२१.२.१० जल पी .बी.









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