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Saturday, February 26, 2011

" कोशिश " koshish-shuklabhramar-Kavita-Hindipoems..nari,patang,koyla,pagli..

 " कोशिश "
अन्धकार !
एक किरण फूटी,
'कोने' से - एक झरोखे से
'वो' -निकला - बढ़ा,
मुस्कराया-
अभिवादन किया
फिर चढ़ने की 'कोशिश'
आसमान में उड़ने की तमन्ना..
थोडा चढ़ा ..गिरा....
फिर चढ़ा -गिरा..
गिरा-गिरा-गिरा....
फिर गिरा-
हम हँसते -ठहाके लगते रहे
गिरने पर हँसने की आदत है -
हमें  -  बालपन से
गिरने पर - मजा आता है,
लड़खड़ाते बच्चे पर
'रेस' लगाते घुड़सवार पर
थिरक-थिरक गिरती कटी - पतंग पर
पत्थर की 'चोट खाए' गिरते 'आम' पर
'पतझड़'  में झरझरा- गिरते  पत्तों पर
बारिश की बूंदों पर-
फसलों को चौपट करते 'ओलों' पर
सूरज से 'जेठ' में गिरते शोलों पर
पहाड़ से गिरते झरनों पर
कुश्ती में चित्त पहलवान पर
विधानसभा-संसद में भड-भडाकर-
गिरती सरकार पर ,
दलाल- स्ट्रीट में गिरते "शेयर" पर
प्याज टमाटर के गिरते मूल्य पर
पटरी से लुढ़कती- एक के ऊपर एक-
चढ़ते - गिरते 'रेल' के डिब्बों पर -
और भी न जाने कितने -किस किस पर
और तभी   'वो'   हमारा -
हंसी का पात्र - 'जोकर'  -"नायक" -
धमधमाते- ऊपर चढ़ा,
सारी " रौशनी" फोकस उसके ऊपर
छोड़ हाथ- 'आसमान' में- 'जम्प' -
कलाबाजियां - 'ये' मंच वो 'मंच'
छोड़ता-पकड़ता-उड़ता चला-
हमारी आँखें फटी की फटी
सर उठाये उस 'जोकर' को
आसमान में ताकते
सोचते पड़े- -कि
गिरने वाला ही - चढ़ सकता है
बढ़ सकता है -
"एक कोशिश"
रोने से -  मुस्कराहट
अंधकार से उजाले
ज़मी से आसमां तक
फैली है - 'जो'
सुरेन्द्रशुक्लाभ्रमर
२६.०२.२०११
जल (पी.बी.)
८.१० पूर्वाहन .



kal fir aayenge aur koi kachchi kaliyan chunne vaale..ham sa behtar kahne vaale tum sa behtar sunne vale-Bhrmar ..join hands to improve quality n gd work

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