ऊँची दुकान
फीकी पकवान ,
मालिक ने फटकारा
ऐ डोकरी ! हट >>
कहीं दूर - उधर<<
जा के मर ..
टोकरी उठाई
फिर कुछ
खिसक - खिसक
फूटपाथ पर
बैठ गयी
(photo with thanks from other source for a good cause)
ले लो बाबू ..
ले लो बाबू ..
बुढ़िया माई है लायी
“देशी ”-
टमाटर -मटर
गेंदे और बेर ..
भीगती तालाबों में ,
लाती कभी कभी ,
कुआँ -बेरा –
कुमुदिनी...
कमल की नाल ,
सिंघाड़ा ..
फिर मुंह फाड़ा >>>
चिल्लाई -आवाज लगायी
दो पैसे सस्ते में ले लो
ले लो बाबू -“देशी ” ले लो
कोई इक्का - दुक्का ,
“देश ” वाले ,
“देशी ” पर रुकते ,
‘चार ’ बात सुनते ,
बाबू -खुद नहीं खाती -
मै -इसी से बच्चों
को पढ़ाती -
दो रोटी खाती ,
घर - संसार चलाती
भारी भीड़
लोग भागते
सुपर मार्केट
बिग बाजार ..
चले जा रहे ....
पार्किंग भी भर गयी
बुढ़िया खिसक गयी
धीरे .. धीरे ..
बचे खुचे फूल ,
गेंदे व् बेर ..
चढ़ा दिए
भगवान को .
फिर वो “डोकरी ”
‘धन्यवाद’ देती
ठिठुरती ..
साँझ ढलती ..
बढ़ चली घर –
"गाँव " की ओर ..
लिए अपनी “देशी ”-
टोकरी ..
ममता ...
और प्यारा “देश ”.
सुरेन्द्रशुक्लाभ्रमर ,
7.15 पूर्वाह्न 17.2.11
जल (पी . बी. )
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