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Monday, February 28, 2011

"मैदान-ए-जंग" में डटे युवा खिखिया रहे -SHUKLABHRAMAR-KAVITA-HINDI POEMS

"मैदान-ए-जंग" में डटे युवा खिखिया रहे -

आज कुछ नया नहीं
ऊँघता उठा -चाय -चुस्की
नित्यकर्म-अख़बार
इसने लूटा -उसने मारा-
ये घोटाला -वो घोटाला
अपने कमरे में बैठा
इतनी बड़ी दुनिया -"ग्लोब"
ऊँगली से घुमाता रहा
करीने से सजा -सजाया कमरा
किताबें -पोथी -कुछ पन्ने
बस - एक कवि की अमानत
बाहर शीत लहर -शर्द हवाएं
धुंध का आवरण
जिसमे जुड़ा है -धुंआ
चूल्हे में जलती लकड़ी का -
मिल का -
भांय-भांय-दौड़ती गाड़ियों का
श्मशान में -दुनिया को विदाई
देते गम का -
बाहर अंधकार -हमें क्या
उससे -सरोकार !
खून गरमाया -खेत-मैदान-
मंदिर -बाजार-स्टेशन
घूमने निकला - देखा 
मंदिर में भीड़ -शोरगुल 
घंटे -शंख-भजन-कीर्तन 
ऊँचे शिखर-जमीं पर बैठे 
लोग -कतार में -कुछ के
हाथ में कटोरियाँ --रटा-रटाया
एक 'जबान'- दे दाता के नाम -
तुझको अल्ला - रक्खे राम !!!
स्टेशन पर जुदा होते 
लोगों का दर्द -विरह
ट्रेन पकडे -कुछ दूर दौड़ते लोग
अंत में दो आंसू टपकाने को
- "खोया" - किसी ने - झकझोरा -
एक युवती -एक को पीठ में बांधे  -
दो को पीछे घुमाते..
बाबू- दे न कुछ पैसे -
शादी है बेटी कुआंरी है -
घर जल गया है -
फिर ..एक युवक.. मेरी जेब कट गयी
-घर जाना स़ाब- टिकट भर का ..
छूटता  -  झटकता -  जा पंहुचा -रौनक-
'बाजार' -काजू -बादाम की दुकान 
-मै तोहफे में बांटने को - चुनता -
तरह तरह के सैम्पल 
फिर एक घिघियाती आवाज ..
हृष्ट  -पुष्ट युवती ..गोद में झांकता 
बच्चा..  हे बाबू ..दे न ..कुछ..
बच्चा भूखा है कल से ..कुछ नहीं खाया..
बच्चा हँसा -शायद ये सोच  कि मै 'फंसा'
मै  सोचता रहा ..
कितने अच्छे लोग हैं - हमारे - 'देश' के
भरी दुकान में घुसे - 'भूखे'
मगर  'लूटे' - न कुछ खाते

लौटते अपने घर - आशियाने को
गुमशुम -गुमनाम 'मै'
धुंधलके में शाम को ..
देखा कुछ तम्बू - खाली जमीन पर
 कब्ज़ा -जमाये लोग- कुछ जाने -
पहचाने चेहरे ..  औरतें बच्चे ..
'टेप' , 'टी.वी.' शोर -शराबा
हंसी -  ठहाका ..मस्ती -मजा
'कुछ' छीलते -  तलते  -  भूनते -
मसालों की -  अजीब गंध  .
सुबह हो गयी - दिन निकला
गोद में बन्दर से लटके
मासूम -  बच्चे -  नंगे चिथड़ा पहने
पान खाए महिलाएं -छोकरियाँ
हाथ में 'कटोरियाँ' -कुछ बच्चे -सम्हाले
निकल पड़े -अपनी डिउटी पर
उधर टेप सुनते - चुन्नी बदनाम हुयी --
फुल वाल्यूम - ताश -जुआ खेलते
गुटका चबाते -कुछ -
मैदान-ए -जंग में   डटे
"युवा" खिखिया रहे ..
उनकी डिउटी -
दिन के पाले में नहीं
शायद रात को होती
है ...बस...

सुरेन्द्रशुक्लाभ्रमार
२८.०२.२०११ जल पी.बी.



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