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Saturday, March 5, 2011

"जज" को तनिक भी - दया न आई,-shuklabhramar5-kavita-hindi poems

 "जज" को तनिक भी - दया न आई,
सुबह सुबह
भिनसार-उठना
आपस में चाँव -चाँव
समूह बनाये -यहाँ -वहां
मैदान में चहकना
रोना-जब काम न आया
एक "मंच" बनाया
'महासभा" पंचायत
सबको जगाया
न्योता दे बुलाया
दुःख दर्द कहने
उसको जकड़ने
"समूह" में शक्ति दिखाने
आवाज बुलंद करने
"वो" चिड़िया -उडी
मंच पे चढ़ी
ललकारा -फटकारा
ले लिया नाम -कितनो का
जो थे बदनाम
"जज" ने पुचकारा
धीमे से प्यारे से लहजे में
'शेर' सुनाया
मांग लिया ढेर सारा
सबूत -गवाही
जिसने की थी तवाही
चिड़िया रोई चूं चूं
चिल्लाई-पगलाई 
जज को तनिक भी -
दया न आई
ऑर्डर -ऑर्डर -सबूत -सबूत
अड़ा हुआ -हथौड़ा   मारता रहा  

हाँ है -सबूत -मै जली हूँ  
दिन रात उडी हूँ
-तिनके-तिनके -
बीन-बीन लायी हूँ
घोंसले में जुटाई हूँ

सुनते ही -एक
'ताकतवर' - 'बाज' उड़ा
आसमान चढ़ा -सबको धता-बता
ओझल हुआ
फिर आग की लपटें
चूं चूं चूं चूं दबी चीख
एक "घोंसला" फिर जला
जिसमे उस चिड़िया के -
अंडे -बच्चे थे -निगरानी में
"सबूत के "

बलिदानी -फडफडाई
हार न मानी -गुहार लगायी
चिल्लाई अब तो
लाखों ने देखा
"गवाही"   उसकी  तवाही
वो "फंसा"
पर मंच पर गवाही
देने कोई न चढ़ा
सबको याद आई
लपटें ज्वाला
घोंसला -
उनमे पलते -
अपने अंडे बच्चे
"जज" को सांप सूंघ गया
एक "गीध" जटायु सा
जिसका पंख कटा
राम -राम करते
रो पड़ा -इतिहास
के पन्ने-खड़बड़ाते  
उड़ते आंधी में
बिखर गए
भीड़ तितर-बितर
हो गयी .

शुक्लाभ्रमर५
५.३.२०११ जल पी बी




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