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Tuesday, May 17, 2011

कजरा सोखि लिए अंसुवन को



पुलकित गात बहे पुरवैया
आँचर उडि समझावत जी को
कागा बोली गयो अंगनैया
(All photo taken  with thanks from other source/google)
कजरा सोखि लियो अंसुवन को !!

कर सोलह श्रृंगार   सखी री

दर्पण हंसी उक्सावत  जी को
लोभी -भ्रमर -प्रसून सजा री


लव मदिरा छलकावत  नीको !!

अंग सिहर जाते हर आहट
घुंघरू बोली रिझावत जी को

धक् -धक् दिल भरता कड़वाहट 
अब विलम्ब ना लागत नीको !!

ननद दौडि नाची अंगनैया
छतिया भरि मै चूमी उसी को -
जल  -  सन्देश भिजायो भैया 
नैन  वाण से घायल पी को !!

सूरज अम्बर सेज पुकारे
जाहु प्रिया के प्राण बसैया
रजनी ना अब -सागर-लागे
आइ गए अब नाव खेवैया !!

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर  
१.५.२०११
लेखन हजारीबाग २१.९.१९९७ रविवार 
८.३० मध्याह्न  



Dadi Maa sapne naa mujhko sach ki tu taveej bandha de..hansti rah tu Dadi Amma aanchal sir par mere daale ..join hands to improve quality n gd work

Sunday, May 1, 2011

सीता डारो न तुम जयमाल


सीता डारो न तुम जयमाल
सखी री कहाँ खोयी पड़ी ...






(photo with thanks from other source)


कमल नयन सूर्य किरणें बिछीं -२
वहां सागर सी है गहराई
कहाँ री खोयी पड़ी ....

सीता डारो न तुम जयमाल
सखी री कहाँ खोयी पड़ी ......

तिरछी भौंहे मायाजाल जादुई
भाषा पढियों न उम्र गंवाई
कहाँ री खोयी पड़ी .....

मुख मंडल कोटि चंदा समाये
जिसे देखन को दुनिया दिवानी
कहाँ री खोयी पड़ी ......

भाल बाल देखो राजा मुनी या 
पार पावें न कोई तपसी ज्ञानी
कहाँ री खोयी पड़ी .....

लाल होंठ अमृत घट  दीखें
इनकी बातों में कितनी मिठाई
कहाँ री खोयी पड़ी .........

श्वेत मोती -सखी ये -दांत रिझाएँ
गिरे बिजली न दिल को सम्हाल
कहाँ री खोयी पड़ी ......

जनक दुलारी तू लक्ष्मी भवानी
जरा खुद को भी तो ले पहचान
कहाँ री खोयी पड़ी .....

त्रिभुवन स्वामी ये हर दिल बसते
तेरा इनके भी हिया स्थान
कहाँ री खोयी पड़ी
सीता डारो न तुम जयमाल
सखी री कहाँ खोयी पड़ी


सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
१.५.२०११
लेखन २६.११.१९९७ ९.४५ मध्याह्न
हजारीबाग झारखण्ड 



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