जैसे गोरी घूँघट में हो
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रंग बिरंगी बदरी डोलीं
घेर गयीं “दिनकर” को
शरमाया सा छुपा जा रहा
आंचल – बदली के वो
सप्त रंग के इंद्र धनुष बन
शरमाना दिखलाई
जैसे गोरी घूँघट में हो
पलक किये कुछ नीचे
चपला सी मुस्कान लहर को
वो अधरों में भींचे
शरमाना दिखलाई
जैसे गोरी घूँघट में हो
पलक किये कुछ नीचे
चपला सी मुस्कान लहर को
वो अधरों में भींचे
छुई – मुई सी कोई कली सी
हो बैठी सकुचाई
लेकिन भाटा – ज्वार उठे तन
अंग – अंग सिहरन भर आई
सूर्य रश्मि तब लिए लालिमा
छन – गालों- अधरों -पलकों हो
शर्मीली बन हृदय समाई
द्युति चमकी बस दिखी एक पल
खो तम-गयी-लजाती !
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल “भ्रमर”
८-५-२०१२ कुल्लू यच पी
७.३०-८.१५
हो बैठी सकुचाई
लेकिन भाटा – ज्वार उठे तन
अंग – अंग सिहरन भर आई
सूर्य रश्मि तब लिए लालिमा
छन – गालों- अधरों -पलकों हो
शर्मीली बन हृदय समाई
द्युति चमकी बस दिखी एक पल
खो तम-गयी-लजाती !
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल “भ्रमर”
८-५-२०१२ कुल्लू यच पी
७.३०-८.१५
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
Dadi Maa sapne naa mujhko sach ki tu taveej bandha de..hansti rah tu Dadi Amma aanchal sir par mere daale ..join hands to improve quality n gd work
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